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तकदीर का बादशाह गोविन्द सिंह डोटासरा govind singh dotasara



सीकर- कहते हैं जिसका भाग्य प्रबल होता है, उसे हरा पाना इतना आसान नहीं होता। सीकर जिले में भी एक ऐसे ही नेता है जो पिछले डेढ़ दशक से तकदीर के बादशाह बनकर अपने विरोधियों को हर हाल में चारों खाने चित कर रहे हैं। हालांकि इस शानदार,  जानदार उपलब्धि में उनकी होशियारी, समझदारी और कड़ी मेहनत भी काबिले गौर हैं। बता दें यह नेताजी कोई और नहीं राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और शिक्षा मंत्री गोविन्द सिंह डोटासरा है, जिन्होंने सियासत का सफर सफलता के सोपान पर निरंतर चढ़ते हुए जारी रखा हुआ हैं। समझा जाए तो अल्प समय में सियासत में जो मुकाम ङोटासरा ने हासिल किया है, उससे हर किसी को ईर्ष्या हो सकती है परंतु राजनीति के मंच पर किरदार निभाने वालों के लिए वे आदर्श हीरो भी हैं। पिछले दिनों हुए पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रदर्शन को लेकर डोटासरा की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान लगा और खासकर उनके निर्वाचन क्षेत्र लक्ष्मणगढ़ के नतीजों को लेकर इस चर्चा ने जन्म ले लिया कि आने वाले दिन डोटासरा के लिए अब तकदीर के नहीं कड़े संघर्ष के होंगे लेकिन भाग्य ने एक बार फिर किसान पुत्र का साथ दिया और जताया कि अभी उनके नसीब की पोटली खाली नहीं हुई हैं। नवगठित नेछवा पंचायत समिति के नतीजे में कांग्रेस और भाजपा के 7-7 और एक सदस्य निर्दलीय निर्वाचित हुआ, जिसको डोटासरा ने अपने पक्ष में लाकर बाजी जीत ली। इससे कहीं ज्यादा लक्ष्मणगढ़ पंचायत समिति के परिणाम में डोटासरा का राजनीतिक कौशल और नसीब का साथ देखने को मिला। जहां नतीजों में कांग्रेस पिछड़ कर लाटरी के जरिए चुनाव जीत गई। लक्ष्मणगढ़ में कांग्रेस के 12 भाजपा के 13 सदस्य चुनाव जीत कर आए ऐसे में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत था। परंतु डोटासरा की तकदीर भी जोर खा रही थी। उठापटक के तकड़ी राजनीतिक घटनाक्रम के बीच भाजपा की एक महिला सदस्य की तीसरी संतान होने का लुक ना डोटासरा के हाथ लग गया। नतीजतन कई घंटों की राजनीतिक जोर आजमाईश के बीच प्रशासन ने उस सदस्य के मतदान पर रोक लगा दी, जिस सदस्य के तीसरी संतान होने का मामला था। जिसपर तुरन्त ही भाजपा ने पलटवार करते हुए न्यायालय की शरण ली और मतदान पर लगी रोक को हटवा दिया, जिसके फलस्वरूप तीसरी संतान वाले सदस्य ने वोट डाल दिया। ऐसे में एक बार फिर राजनीतिक प्रभाव से विवादास्पद को अलग से रख कर लाटरी के जरिए निर्णय करने का फैसला हो गया। अब फैसला कागज 12-12 मतों से बराबरी पर खड़ा था। इस पर भी डोटासरा की तकदीर ने फिर जोर खाया और उन्होंने  विरोधियों को परास्त कर दिया। लॉटरी में नतीजा कांग्रेस के पक्ष में आया और डोटासरा की बल्ले-बल्ले हो गई। दरअसल शिक्षक पुत्र और वकील से नेता बने डोटासरा का भाग्य प्रबल हैं। जब उन्होंने पहली बार लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और मात्र 34 मतों से जीत मिली। इतने कम मतों से जीत का स्वाद चखने वाले डोटासरा को आज तक एक के बाद एक सफलता मिल रही है, जो सियासत के मैदान में बिरले नेता को ही मिलती है, जो अब वे साबित हो रहे हैं। दूसरी बार विधानसभा का चुनाव का नतीजा भी इनकी कड़ी मेहनत के साथ-साथ प्रबल भाग्य को दर्शाता है, जब कांग्रेस पूरे प्रदेश में मात्र 21 सीटों पर सिमट गई तब डोटासरा ने विजयश्री का वरण किया। विपक्ष में रहते इनकी भूमिका कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की नजर में चढ गई। देखते ही देखते यह प्रदेश में एक प्रभावशाली वक़्ता के रूप में जमने लगे। चुनाव में जीत की हैट्रिक लगने के साथ ही डोटासरा को मंत्रिमंडल में स्थान मिल गया। यहां भी तकदीर ने अपना पूरा खेल खेला। जब किसी का भाग्य से सिर चढकर बोलता है तो कहते हैं  'भगवान देता है तो छप्पर फाड़ के' ऐसे में डोटासरा के तकदीर की रफ्तार 'टॉपगियर' में चल रही थी, इसी दौरान प्रदेश में राजनीतिक संकट छाया गया और सरकार जाने की नौबत तक आ गई लेकिन इस दौर में किसको क्या मिला यह दिगर बात है, लेकिन डोटासरा एक बार फिर भाग्य के धनी बनकर उभरे और उनको देखते ही देखते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का ताज पहना दिया गया। बहरहाल कांग्रेस में लंबी राजनीतिक पारी खेलने वाले नेताओं को दिल्ली का यह फैसला भले ही रास नहीं आया होगा लेकिन डोटासरा की उस तकदीर के आगे सब फेल है, जो इतरा कर चल रही है, ऐसे में  देखना यह है तकदीर के बादशाह माने जाने वाले डोटासरा को आने वाले दिनों में सियासत की चाल कहां तक ले जाती हैं।

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