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नवलगढ़ में बाबा रामदेव के मंदिर निर्माण व मेले की शुरुआत को लेकर अब तक का इतिहास lok devta baba ramdev Nawalgarh

नवलगढ़ में बाबा रामदेव के मंदिर निर्माण व मेले की शुरुआत को लेकर कई किवदंतियां हैं। एक कहानी ओमप्रकाश व्यास की ओर से लिखी पुस्तक 'युग दृष्टा बाबा रामदेव के अनुसार इस प्रकार है।
नवलगढ़ के तत्कालीन राजा नवल सिंह की रानी की लोकदेवता बाबा रामदेव में गहरी आस्था थी।
एक बार राजा नवल सिंह बादशाह को 22 हजार रुपए का कर देने के लिए दिल्ली जा रहे थे।
हरियाणा के दादरी में उन्हें पता चला कि चिड़ावा निवासी एक महिला कोई सगा भाई नहीं है। 
वह भात भरने के लिए अपने चचेरे भाइयों का इंतजार कर रही थी, मगर वे नहीं आए।
लोग महिला का मजाक उड़ाने लगे। यह बात राजा नवलसिंह को पता चली तो उन्होंने भात भर दिया।
 बादशाह के कर के 22 हजार रुपए भात भरने में खर्च हो गए। इसलिए वे नवलगढ़ लौट आए।
कर नहीं चुकाने की बात जब बादशाह को पता चली तो उन्होंने सेनापति को नवलगढ़ भेजा।
सेनापति ने धोखे से राजा नवलसिंह को गिरफ्तार किया और दिल्ली ले जाकर कैद में डाल दिया।
एक रात नवलसिंह ने लोक देवता बाबा रामदेव जी को याद किया।
इसके बाद वे सो गए। कुछ देर बाद अचानक मौसम खराब हो गया। तेज हवाएं चलने लगी। 
एकाएक मौसम बदलने और सर्दी बढऩे से कारावास के पहरेदार अपना स्थान छोड़कर चले गए। 
हवा के झोंकों से कारावास का गेट ताले सहित गिर गया। इस पर नवलसिंह की आंख खुली। 
उन्होंने देखा कि कारवास के गेट नीचे गिरे हुए हैं। पहरेदार भी नहीं हंै। वे कारावास से बाहर आ गए।
बाहर पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें एक घोड़ा खड़ा हुआ दिखाई दिया। 
वह बाबा रामदेवजी का घोड़ा था, जो उन्हें दिल्ली की कैद छुड़वाकर नवलगढ़ ले जाने आया था।
वे घोड़े की पीठ पर सवार होकर और घोड़ा तेज रफ्तार से दौड़ता नवलगढ़ के रामदेवरा आ गया।
उस वक्त घोड़ा नवलगढ़ में उस जगह रुका जहां वर्तमान में बाबा रामदेव का मंदिर बना हुआ है।
राजा ने घोड़े को अपने गढ़ में ले जाने का प्रयास किया। लेकिन घोड़ा वहां से नहीं हिला। 
इस पर वे घोड़े को वहीं छोड़कर अपने गढ़ में पैदल ही चले गए। 
बाद में उन्होंने घोड़े को लाने के लिए अपने पहरेदारों को भेजा। लेकिन वहां घोड़ा नहीं मिला।
वहां पर सिर्फ घोड़े के पैरों के निशान दिखाई दिए। तब उनकी भी बाबा रामदेव में गहरी आस्था हो गई। 
राजा ने नवलगढ़ में सन् 1776 में बाबा रामदेव के मंदिर का निर्माण करवाया। 
मंदिर निर्माण के बाद से यहां सालाना मेला भरने की परम्परा शुरू हो गई, जो आज तक जारी है।
नवलगढ़ में 240 साल पहले इस चमत्कारिक घटना से शुरू हुआ बाबा रामदेव का मेला

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