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महादेव सिंह है राजनीति के नीलकण्ठ sikar ki rajniti


सीकर। सीकर जिले में चुनाव मैदान की राजनीति का गणित निकालने का श्रेष्ठ फार्मूला यदि किसी नेता के पास है तो वे है, विधायक महादेव सिंह खण्डेला। जिन्होंने अपनी चार दशक की राजनीति में हर परीक्षा के पेपर को न केवल हल किया बल्कि जोरदार अंक प्राप्त कर वोट की राजनीति के अपने आपको महानायक भी साबित कर दिखाया हैं। विधानसभा के आठ और लोकसभा का एक बार चुनाव लड़ने वाले इस राजनेता का राजनीतिक सफर काफी संघर्ष वाला रहा है, लेकिन हर संघर्ष में उन्होंने बाजी जीत कर अपने आपको कुंदन साबित किया हैं। दरअसल तामझाम, दिखावा और अकड़वाली नेतागिरी से कोसो दूर रहकर आम  आदमी का नेता बना रहना ही इनकी सफलता की कहानी कहती हैं। एक मामूली से किसान के बेटे महादेव सिंह ने अपनी सियासत का सफर 80 के दशक से शुरू किया था जब उन्हें एक कमजोर प्रत्याशी मानकर कांग्रेस की टिकट थमाई गई थी। उस समय नियति को क्या मंजूर था यह कोई समझ भी नहीं पाया, शायद स्वयं महादेव सिंह भी नहीं जान पाए होंगे कि बाद में सियासत के इस सफर में चलते-चलते उनका सितारा इतना जबरदस्त बुलंद हो जाएगा। हालांकि इस दरमियान प्रतिद्वंदियों ने महादेव सिंह की सियासत को नेस्तनाबूद करने की कई बार साजिशें रची और तमाम तरह के हथकण्डे भी अपनाएं लेकिन हर बार उन्होंने हर साजिश का करारा जवाब देकर विरोधियों को नाको चने चबा दिए। बता दें कि महादेव सिंह के ऐसे विरोधी प्रतिद्वंदी पार्टी के हो या फिर स्वयं की कांग्रेस में उनका सदा यहीं प्रयास रहा कि वे शीर्ष नेता न बन सके। लेकिन आम अवाम का नेता बन चुके महादेव सिंह ने जनता की ताकत से उन्हें हर बार नाकामयाब कर दिया। कहते है कि महादेव सिंह के खिलाफ राजनीतिक साजिश का पहला समय तब आया जब वर्ष 1993 में उनकी टिकट काट दी गई। खासकर उस समय के दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉ. बलराम जाखड़ के अतिप्रिय होने के बावजूद स्थानीय नेताओं ने उन्हीं से यह निर्णय करा कर प्रतिद्वंदी स्वर्गीय गोपाल सिंह खण्डेला को कांग्रेस का प्रत्याशी बना दिया। इस निर्णय से एक पल तो महादेव सिंह को बड़ा झटका लगा लेकिन दूसरे ही पल क्षेत्र की जनता ने उन्हें निर्दलीय उतार कर षड्यंत्रकारी नेताओं को आईना दिखा दिया। मजे की बात यह है कि उस समय जीते 21 निर्दलीय विधायकों में से 17 ने भाजपा का दामन थामकर सत्ता सुख का वरण कर लिया। लेकिन कांग्रेस को अपनी मां कहने वाले महादेव सिंह ने तमाम तरह के प्रलोभन से गुरेज कर विपक्ष में बैठना ही उचित समझा। राजनीतिक टीकाकारों के मुताबिक आमजन से निरंतर मजबूत रिश्तों के प्रतिफल स्वरूप ही उन्होंने आज यह सिद्ध कर दिखाया है कि खण्डेला विधानसभा क्षेत्र में 

"महादेव ही कांग्रेस है और कांग्रेस ही महादेव ! 

सबको साथ लेकर चलने की भावना के बल पर अपनी धर्मपत्नी पार्वती देवी को वे दो बार पंचायत समिति का प्रधान बना सके। इतना ही नहीं इस बार जब पंचायत चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए मुफीद साबित नहीं हो रहे थे, उन हालातों में भी इन्होंने खण्डेला में हाथ के पंजे को फौलाद की तरह मजबूत कर दिखाया है और अपने सुपुत्र गिरिराजसिंह को प्रधान बना दिया। यह नतीजे ऐतिहासिक रहे, क्योंकि वर्ष 2018 में महादेव सिंह के खिलाफ एक बार फिर षड्यंत्र सफल रहा। जब उनको विधानसभा की टिकट से वंचित कर दिया गया, जिस पर उनको एक बार फिर कठिन परीक्षा देने की चुनौती मिली और उन्होंने उसे सहर्ष ही स्वीकार कर चुनावी दंगल में ताल ठोककर न केवल जीत हासिल कर ली बल्कि यह इतिहास रच डाला कि वे सीकर जिले की राजनीति में अकेले ऐसे पहले विधायक है जिन्होंने दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता हैं। आम लोगों की माने तो  कांग्रेस से महादेव सिंह का पत्ता साफ करने वालों को भले ही यह रास नहीं आ रहा हो पर यह सत्य है कि आज  वे कांग्रेस के मजबूत स्तंभ है, क्योंकि उन्होंने चुनाव जीतकर कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा नहीं खोई हैं।
    ज्ञात रहे महादेव सिंह की राजनीति में एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस ने सीकर लोकसभा क्षेत्र से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। इस परीक्षा में भी सिंह बेहद सफल रहे। उन्होंने लगातार जीत रहे तब के भाजपा प्रत्याशी सुभाष महरिया को जीत का चौका मारने से रोका, जिसके फलस्वरूप उन्हें केन्द्र सरकार में मंत्री का ओहदा हासिल हुआ। यह वह लम्हे थे तब महादेव सिंह को उनकी निष्ठा का प्रतिफल मिला मगर उनकी राजनीति के घोर विरोधियों को यह कहां रास आने वाला था, ऐसे में उनकी साजिश सफल होते ही लाखों वोटों से जीतने वाले महादेव सिंह की टिकट को बली चढ़ा दी गई। नतीजा आज सबके सामने है, कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाले सीकर में एक बार फिर दिल्ली की जीत दूर की कौड़ी साबित हो रही हैं। ऐसे में भले ही एक के बाद एक षड्यंत्र महादेव सिंह के खिलाफ होते रहे हो लेकिन वह तो राजनीति के "नीलकंठ" साबित हो चुके हैं।

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