"बंधी बुहारी लाख की, जे बिखर ज्या तो ख़ाक की" विश्व परिवार दिवस पर विशेष रिपोर्ट...
हमारे बुजुर्ग कितना सटीक कह गए कि, "बंधी बुहारी लाख की, जे बिखर ज्या तो ख़ाक की।" परिवार दिवस पर पेश है इसी जुमले को चरितार्थ करती शेखावाटी परिक्षेत्र के गांव नगरदास के मील गौत्रीय जाट परिवार को लेकर एक ख़ास रपट।
दर असल यह दास्तां है गांव के कर्मयोगी स्व. गोपाल राम मील के पुत्रों के संयुक्त परिवार की। ढाणी हटीदान चारण से लगती नगरदास गांव की रोही के अपने खेत में बनी ढाणी में इस मील परिवार में 41 सदस्यों का खाना एक साथ बनता है और एक पूरी बारात की शक्ल में हर शाम को यह कुनबा भोजन भी एक साथ ही करता है।
'एक सब के लिए और सब एक के लिए' की पुनीत भावना से चलता है यह परिवार। 6 भाइयों के इस साझा परिवार में 'एकता में बल है' की पुनीत भावना को लेकर सभी मिलजुल कर रहते हैं। खुशियां मिलकर मनाते हैं और तकलीफें बांट लेते हैं। परिवार का हर छोटे से बड़ा फैसला एक जाजम पर बैठ कर मिलकर लिया जाता है यहां। विशेष परिस्थिति में कोई एक भाई निर्णय लेले तो बात गिरने नहीं देते दूसरे भाई। कभी कोई बात ऐसी भी आ जाती है, जिस पर एक राय नहीं बनती। ऐसे में परिवार की उम्र दराज मुखिया, श्रीमती भगवानी देवी जज बन कर फैसला कर देती हैं। बस यही ताकत है इस परिवार की। गोपाल राम जी के छः - छः बाल - गोपाल की प्रथम पाठशाला इन्हीं की गोद रही है। मां के आंचल के साये और प्रदत्त संस्कारों का असर हर पल नजर आता है इस परिवार में।
मील परिवार का पारम्परिक व्यवसाय खेती है और सभी भाई मिलकर स्कूल शिक्षा के निजी क्षेत्र में 'श्री बालाजी शिक्षण संस्थान' के रूप में एक बहुत बड़ा स्कूल भी चलाते हैं। कोई 22 वर्ष पहले खुद स्व. गोपाल राम जी द्वारा इस बलुई मिट्टी के अरण्य में रखी नींव का चमत्कार ही है कि दो वर्ष पहले स्कूल की छात्र संख्या 1500 तक पहुंच गई थी। परिवार की साख इसी संस्था से बनी है।स्कूल की बहुमंजिला इमारत दूर से ही दिखाई देती है। छात्रावास का विशाल भवन और परिवार के रहने के लिए मकानात अलग अलग हैं।
सब अपना-अपना काम करते हैं मगर एक-दूसरे का खयाल भी रखते हैं। विवाह - शादी के मौकों पर हल्दी, महिला संगीत और नृत्य के लिए किसी और की जरुरत नहीं पड़ती बल्कि परिवार अकेला ही काफी होता है। आयोजनों पर सभी एक ही थान से कपड़े सिलवाते हैं।हर छोटे बड़े अवसर पर आस - पड़ौस के गांवों से लोगों को आदर सहित बुलाते हैं और उनके यहां भी समय समय पर जाते हैं।घर में छोटे बड़े का खयाल रखा जाता है और बच्चों में उम्दा तहजीब है। दादी-नानी की कहानियां और बड़ों की नसीहत - सभी कुछ आज भी प्रासंगिक है इस कुनबे में। आपसी प्रेम, सौहार्द और मेलजोल के सवाल पर लोग मिसाल देते हैं इस परिवार की। मौजूदा दौर में जबकि हर कोई अकेला रहना चाहता है, मुशीबत आने पर पछतावा करता है। आजकल नैनो परिवार जीने का रिवाज बन गये हैं। अकेले जीना और भाई - बंधुओं की जरूरत की पूर्ति मोबाइल फोन से करना तो जीवन शैली ऐसे परिवारों की मगर जरुरत पड़ने पर उन्हें अपने बहुत याद आते हैं।
वो दिन दूर नहीं जब मील परिवार जैसे संयुक्त परिवारों का अनुसरण हर कोई करेगा क्योंकि जब जब इन्सान मिल कर लड़ा है, तूफानों को रुकना पड़ा है और आसमां को झुकना पड़ा है।
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