दांतारामगढ़ (सीकर)। पांच पर्वतों वाले सैकड़ों साल पुराने पंचगिरी गांव को खंडेला के राजा वरसिंह देव के पुत्र ठाकुर अमर सिंह ने विक्रम संवत 1726 में आखातीज के दिन 352 वर्ष पहले दांता के नाम से बसाया था। दांता संस्थापक ठाकुर अमर सिंह से लेकर अंतिम राजा ठाकुर मदनसिंह सहित देश की स्वतंत्रता प्राप्ति तक दांता पर 16 राजाओं ने राज किया था।
आजादी के बाद दांता दस सालों तक नगरपालिका रहा था। आसपास के गांव पंचायत बनने से दांता पंचायत बन गया था जो आज तक पंचायत ही हैं। इस बार हुए पंचायत चुनाव में दांता की ढा़णियों की पहली बार विमला देवी सरपंच बनी, इससे पहले बाजार के लोग ही सरपंच बन रहे थे। पहली बार ही दांता की महिला सुशीला कुमावत दांतारामगढ़ पंचायत समिति की उपप्रधान बनी।
शेखावाटी के प्रसिद्ध संत बाबा परमानंद की तपोभूमि रही दांता नगरी को आसपास के गांवों में बस उद्योग के लिए भी जाना जाता हैं। कस्बे के कृषि वैज्ञानिक सुंडाराम वर्मा को सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा कर चुकी हैं। इन दिनों गतवर्ष से ज्यादा लोग कोरोना से पीडित हो रहें है। संकट की इस घड़ी में भी अपनी सेवा के संकल्प से डिगे नहीं हैं।
मुझे यकीन है कि जैसा मेरा नाम दांता है वैसे ही मेरे गांव के दानदाता,भामाशाह, सामाजिक कार्यकर्ता वर्षों से मानवता धर्म निभाते हुए इस संकट के समय में रक्त व प्लाज्मा दानकर एवं जरूरतमंद परिवारों को खाद्य सामग्री की व्यवस्था करे। मेरा नाम दांता है मुझे गर्व महसूस होता है कि मैं दांता हूं।
मेरे कस्बेवासियों प्रकोप के पीछे प्रकृति की छिपी मानवता की पुकार सुनते हुए आप अपने संवैधानिक कर्म के साथ मानव धर्म निभाते रहेंगे। बंद के दौरान नियमों का पालन करेगे, कोरोना की बढ़ती हुई चैन को तोडना हैं। घर पर रहना हैं, जरूरतमंद लोगों की मदद करनी हैं।
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