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भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए प्रयासरत - साहित्य कला संस्थान Striving to save Indian culture

वर्तमान समय में युवा पीढी में पाश्चात्य संस्कृति का होता जा रहा प्रसार एवं भारतीय संस्कृति के संस्कारों का निरंतर होता जा रहा ह्रास चिंता का विषय है।
भारतीय संस्कृति विश्व की महानतम संस्कृति रही है।इसका संरक्षण करना सभी विचारशील लोगों का परमकर्तव्य है।इसी उद्देश्य को लेकर रतननगर जिला चूरू में "साहित्य कला संस्थान" नामक एक संस्था की स्थापना की गई है। इस संगठन में 18 वर्षों से लेकर 92वर्षों तक के लगभग 50 लोग भारतीयता के जीवन मूल्यों को बचाने के लिए प्रयासरत हैं।यह संस्थान भारतीय शास्त्रों एवं चिंतनशील मनीषियों  द्वारा दिये गये उपदेशों,शिक्षाओं, संस्कारों, सभ्यता,लोकसंस्कृति,लोककला,पर्यावरण आदि के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु संगोष्ठियों, बैठकोंएवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा नई
पीढी को जागरूक कर रहा है। 
 साहित्य कला संस्थान के अध्यक्ष 92 वर्षीय विद्याभूषण श्री मुरारीलाल महर्षि  ने बताया कि भारतीय जीवनमूल्यों में नैतिकता , ईमानदारी ,प्रेम,तप,सेवा एवं त्याग प्रमुख तत्व हैं।आपने पाश्चात्य संस्कृति एवं भारतीय संस्कृति की तुलना करते हुए बताया कि पश्चिमी संस्कृति भोगवाद की संस्कृति है जबकि भारतीय संस्कृति मानवीय जीवन मूल्यों को महत्व देती है।भारतीय संस्कृति जीवन में स्थायित्व एवं सुदृढता लाने वाली है।
  श्री महर्षिजी ने बताया कि भारत में युवक युवतियों के पारिवारिक जनों की सहमति से होने वाले विवाह जीवनभर चलते हैं जबकि अमेरिका आदि देशों में एक स्त्री अपने जीवन में कई जीवनसाथी बना लेती है।
 साहित्य कला संस्थान के निम्नांकित  कार्यकर्ता समर्पण भाव से भारतीय संस्कृति के जीवनमूल्यों के संरक्षण एवं प्रचार प्रसार में प्रयत्नशील हैं--

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