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राजस्थान के दुर्ग राजसी शान शौकत के प्रतीक Rajasthan ke durg

राजस्थान के दुर्ग।                        मुनि शुक्र के अनुसार दुर्ग की नौ कोठियां बताई गई है ऐरन दुर्ग ( जिसमें चारों तरफ खाई या कांटे हो जैसे कि रणथंभोर का दुर्ग) गिरी दुर्ग (इसमें ऊंची ऊंची पहाड़ियां हो जैसे चित्तौड़ का दुर्ग) जलदुर्ग (जिसके चारों तरफ पानी हो जैसे गागरोन का दुर्ग ) वन दुर्ग (वनों से घिरा हो जैसे सिवाना का दुर्ग) पारिखदुर्ग (जिसके चारों तरफ गहरी खाई हो जैसे भरतपुर का दुर्ग ) पारिध दुर्ग ( जिसके चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारों का परकोटा हो जैसे चित्तौड़ का दुर्ग) धानवन दुर्ग( उसके चारों तरफ मिट्टी हो( जैसलमेर का दुर्ग) शिवाय दुर्ग (जिसमें  राजा के भाई बंधु रहते हैं   सैन्य दुर्ग (जहां पर सेना रहती है   )  चित्तौड़गढ़ का दुर्ग           
 इसे राजस्थान का गौरव या किलो का सिरमौर भी कहते हैं।   इसका प्राचीन नाम चित्रकूट है । मुनि शुक्र के अनुसार इस दुर्ग में  नो कोठियों में से 8 कोटियां मौजूद है इस दुर्गका निर्माण सातवीं सदी में चित्रांगद मौर्य के द्वारा चित्रकूट पहाड़ी पर मेसा के पठार पर करवाया गया था है यह जानकारी हमें श्यामलदास द्वारा रचित वीर विनोद से मिलती है चित्तौड़गढ़ दुर्ग समुद्र तल से1810 फीट है इस दुर्गके पास से बेडच,गंभीरी नदियां निकलती है इस दुर्ग में 3 साके हुए हैं ।     
  प्रथम साका 1303 ईस्वी में रावल रतन सिंह  व  दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के बीच में हुआ जिसमें 28 जनवरी 13०3 ईस्वी को अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का घेरा डाला 8 वहां गिरा डालने के बाद 26 अगस्त 1303 ईस्वी को चित्तौड़ को विजय कर लिया रावल रतन सिंह इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हैं और उनकी रानी पद्मिनी ने सोलह सौ सहेलियों के साथ जौहर कर लिया यह राजस्थान का सबसे बड़ा शाका था यह मेवाड़ का पहला साका तथा राजस्थान का सबसे बड़ा शाका कहलाता है खिज्र खां (अलाउद्दीन का पुत्र )को चित्तौड़ का शासक बनाया और उसी के नाम पर चित्तौड़ का नाम बदलकर खिजराबाद कर दिया ‌‌‍‌‌ दूसरा साका    1534 _ 35        रानी कर्मावती और बहादुर शाह के बीच यह शाका   मेवाड़ महारानी कर्मवती जो महाराणा सांगा की विधवा रानी थी ।
1534 ईस्वी में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने चित्तौड़ का घेरा डाला उस समय रानी कर्मावती ने चित्तौड़ की रक्षा करने हेतु मुगल सम्राट हुमायूं के पास राखी भेजी परंतु हुमायूं सही समय पर नहीं पहुंच पाया 1535 में बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया और बाघ सिंह रावत के नेतृत्व में राजपूत वीरों ने केसरिया किया और रानी कर्मावती  ने जौहर किया।     
तीसरा साका 1567_ 68  ‌
यह शाका  मेवाड़ के महाराणा उदय सिंह और मुगल सम्राट अकबर के बीच हुआ 1567 इसमें सम्राट अकबर ने चित्तौड़ का घेरा डाला परंतु राणा उदय सिंह अकबर का सामना नहीं कर पाए और चित्तौड़ की जिम्मेदारी अपने दो प्रधान सेनापति जयमल और पत्ता को सौंपकर जंगल में चला गया 1567 में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया जयमल फत्ता लड़ते हुए वीरगति वीरगति को प्राप्त हो गए रानी गुलाब कंवर व  फूल कंवर ने जौहर कर लिया। यह राजस्थान का तीसरा शाखा कहलाता है अकबर जयमल फत्ता की वीरता से इतना ज्यादा प्रभावित हुआ कि उनकी पाषाण की मूर्ती बनवाकर आगरे के किले के दरवाजे के बाहर लगवा दी बाद में यह मूर्ति जूनागढ़ यानी बीकानेर के दरवाजे के बाहर लगवाई थी । चित्तौड़ के दुर्ग में अधिकतम निर्माण महाराणा कुंभा द्वारा करवाया गया था जिसने कुंभ श्याम मंदिर है ,काली का माता मंदिर,मीरा मंदिर ,सिद्धेश्वर मंदिर , पद्मिनी महल रतन सिंह महल बनवीर का महल ,अन्नपूर्णा माता का मंदिर, तुलजा भवानी का मंदिर ,        वीर कला की छतरी ,   संत रैदास की छतरी ,जौहर कुंड , गोरा बादल के महल  , सिंगार चंवरी मंदिर  चित्तौड़ में हैजय माता की चित्तौड़ के दुर्ग को  मेवाड़ का गौरव कहा जाता है चित्तौड़ के दुर्गको दक्षिण  पूर्व द्वार के रूप में जाना जाता है

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