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बातें करना आसान है परंतु वास्तविकता के धरातल पर यह सत्य है कि आज सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज हो रही है । जाति देखो और फिर उसके अनुसार ही उसको महत्व दो या उसके काम करो । किस जगह कौन सा अधिकारी किस जातीय समीकरण में फिट बैठता है। किस विधायक को किस जाति का अधिकारी चाहिए, यह कैलकुलेशन पहले होता है, तब जाकर पोस्टिंग मिलती है। योग्यता के नाम से न तो पोस्टिंग मिलती है ना उसकी एसीआर भरी जाती है और ना ही उसे ईनाम मिलता है। सब जातीय गणित के आधार पर तय होता है ।जातिय आंदोलन होते हैं तो उसी जाति के अधिकारियों को ड्यूटी पर लगाया जाता है। जाति के चेहरे देखे जाते हैं फिर तिलक लगाए जाते हैं। और तो और स्टाफ भी यह देखता है कि मेरी जाति का अधिकारी है तो मैं काम करूंगा । अगर मेरी जाति का अधिकारी नहीं है तो काम नहीं करूंगा।जिस जाति के नेता जी होते हैं वे अपनी ही जाति के चहेते अधिकारियों को अपने क्षेत्र में लगाते हैं । जिस जाति का वोट बैंक नहीं होता है उसका अधिकारी कितना ही योग्य क्यों न हो कोई नहीं पूछने वाला ।खुली किताब है दोस्तों चारों तरफ नजर उठा कर देख लीजिए, नजर आ जाएगा।कड़वी बात है, मगर है एक्यूरेट।🙏🙏🙏

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